वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल

वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल की उपलब्धियां

अपने गठन के समय ही वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल का जोर सत्ता परिवर्तन की बजाय व्यवस्था परिवर्तन पर था। इसीलिए यह पार्टी अपनी स्थापना के शुरुआती 4 सालों में कोई चुनाव तो नहीं जीत पाई, लेकिन तमाम राजनीतिक दलों, प्रदेशों की सरकारों और केंद्र सरकार ने इसी पार्टी के कार्यक्रम को अपनाया।

  1. वोटरशिप के लिए पूरे देश में आन्दोलन कर रही वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल व अन्य तमाम संगठनों के प्रभाव से मजबूर होकर केन्द्र सरकार ने 2019 में छोटे किसानों को प्रतिमाह रुपये 500 देकर वोटरशिप को सैद्धांतिक मंजूरी दी। इसके अलावा मजदूरों को 60 साल की उम्र के बाद रु. 3000 प्रतिमाह देने की घोषणा की किन्तु दिया नहीं। प्रमुख विपक्षी दल कांगे्रस ने भी इसको मुख्य मुद्दा बनाया तथा सत्ता में आने के बाद गरीबों को रु. 6000 देने की घोषणा की थी। हालांकि अगर वोटरशिप आन्दोलन चलाने वाले इन वादों से आश्वस्त होकर घर बैठ गये, थक गये या उनका धैर्य टूट गया, तो सरकार और उक्त सभी दल नकद पैसा देने से मुकरने और यू-टर्न लेने में देर नहीं करेंगे। वोटरशिप की लोकप्रियता जनता में देखते हुए लगभग 1000 राजनीतिक पार्टियों ने जनता में यह मुद्दा उठाना शुरु कर दिया है।
  2. गरीबों पर जब भी खर्च करने की बात आती थी तो सन् 2004 तक आम तौर पर सभी सरकारें देश में पैसा न होने का रोना रोती थीं। लेकिन जब वोटरशिप का मामला संसद में पहुंचा, तो जनता को सीधे आर्थिक लाभ देने की घटनाएं घटने लगीं।
  3. छत्तीसगढ़ सरकार दिसम्बर 2007 में छत्तीसगढ़ विकास पार्टी द्वारा उठाये गये वोटरशिप के मुद्दे का प्रभाव घटाने के लिए प्रदेश के सभी 36,00,000 गरीब परिवारों को रू. 3.00 प्रति किलो चावल देने की घोषणा की। यह योजना अभी भी जारी है।
  4. बिहार में नालंदा जिले के सभी पार्टियों के जिलाध्यक्षों ने वोटरशिप और पंचायतों के जनप्रतिनिधियों को वेतन-भत्ता देने के लिए आंदोलन किया। प्रदेश सरकार को मजबूर होकर जनप्रतिनिधियों को वेतन-भत्ता देने की बात 28 मार्च 2008 को मानना पड़ा। किन्तु वोटरशिप की बात को केन्द्र सरकार का विषय बताकर टाल दिया।
  5. वोटरशिप आंदोलन से जुड़े एक बुजुर्ग सांसद श्री कादेर मोहिद्दीन की सलाह पर डी. एम. के. नेता श्री करुणानिधि ने प्रदेश सरकार के लिए वोटरशिप देना मुश्किल मानते हुए सन् 2007 में विधान सभा चुनावों के समय जनता से वादा किया कि सत्ता में आने पर सभी परिवारों को एक-एक रंगीन टेलीवीजन दिया जायेगा। बाद में टीवी दिया भी।
  6. गरीबों के नाम पर पैसे की कमी का रोना रोने वाली केन्द्र सरकार को पार्लियामेंटेरियंस कौंसिल फाॅर वोटरशिप (PCV) से जुड़े संसद सदस्यों के दबाव में आकर नरेगा (राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना) बनानी पडी। इस मद से आज गरीबों के पास लगभग 40 हजार करोड़ रूपया हर साल पहुँच रहा है।
  7. वोटरशिप आंदोलन का ही प्रभाव था कि केन्द्र सरकार को फरवरी 2009 में ही यह भी घोषणा करनी पड़ी कि केन्द्र सरकार देश के सभी परिवारों को रू. 3000 महीने की आय की गारंटी देने वाली योजना पर 2.5 लाख करोड़ रूपया खर्च करेगी। गरीबों के नाम पर पैसे की कमी का रोना रोने वाली केन्द्र सरकार को जब वोटरशिप के रूप में वोटरों के आर्थिक अधिकारों का सवाल उठता दिखा तो खाद्य सुरक्षा विधेयक-2011 बनाने के लिये मजबूर होना पड़ा। इसमें लगभग 100,000 करोड़ रूपया खर्च होने की संभावना है।उक्त सभी योजनाओं को मिला दिया जाये तो वोटरशिप देने के लिए जरूरी रकम की आधी रकम (लगभग 14 लाख करोड़) का इंतजाम हो जाएगा। कांग्रेेस सरकार की सोंच में कमी बस इतनी है कि वोटरों को नौकर व काम करने के लिए पालतू गुलाम मानने को तो तैयार है, किन्तु परिवार का सदस्य मानने को तैयार नहीं है। इसलिए वोटरशिप आंदोलन के दबाव में आकर सरकार वोटरों पर दया तो दिखा रही है, लेकिन उनका हक देने को तैयार नहीं है। मनरेगा, कैश ट्रांसफर स्कीम, आधार कार्ड, 35 किलो अनाज देने वाले प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून आदि कानूनों व योजनाओं से साबित होता है कि कांग्रेस सरकार वोटरशिप लागू करने की दिशा मे आगे बढ़ रही थी। इसी बात का खतरा महसूस करके सन् 2011 में खरबपतियों ने पैसा देकर निजी धन से चलने वाले टी वी चैनलों को कांग्रेस सरकार को बदनाम करने के काम पर लगा दिया व अंत में कांग्रेस 2014 का चुनाव हार गई। खरबपतियों ने वोटरशिप का काम रोकने के लिये पहले अन्ना आंदोलन करवाया, फिर अन्ना के चेले को मोहरा बनाकर अपनी एक पार्टी बनवाया। इसके बाद दिल्ली के चुनावों के बाद फरवरी, 2014 में दिल्ली की त्रिशंकु विधान सभा देखकर उन्होंने अन्ना के चेले को छोड़कर मोदी को वोटरशिप रोकने का काम सौंपा।

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