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चुनावी चंदे की लालच में गरीबों और मध्यवर्ग से नाता तोड़ चुकी है पार्टियाँ – भरत गांधी

देश के अरबपतियों के फायदे के लिए अगर दो सांसद आवाज़ उठाएं तो केंद्र सरकार कानून बना देती है, लेकिन गरीबों और मध्यवर्ग को आर्थिक गुलामी की कुप्रथा से आजादी देने के लिए जब सैकड़ों सांसदों ने वोटरशिप कानून बनाने की आवाज संसद में उठायी, तो केंद्र सरकार को सांप सूंघ गया। वर्तमान मोदी सरकार इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाले बैठी है।

अगर वोटरशिप के नाम का यह कानून बन जाता तो देश में प्रकृति द्वारा दिए गए उत्पादन और उससे छप रही नोट देश के वोटरों में बंट जाती, मशीनों के परिश्रम से जो उत्पादन हो रहा है और उस उत्पादन के बदले जो नोट छप रही है, वह नोट भी देश के वोटरों में बैठ जाती है।

अगर वोटरशिप कानून बन जाता तो देश के वोटरों को संसद और सरकार जैसी उनके द्वारा बनाई गई साझी संपत्ति, कानूनों और संस्थाओं का किराया कम से कम ₹4500 हर महीना मिलने लगता।

लेकिन संसद की एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिश के बावजूद भी वोटरों को विकास में भागीदारी देने वाला वोटरशिप कानून का प्रस्ताव पिछले 12 साल से संसद में लटका है। मोदी सरकार ने इसको ठंडे बस्ते में डाल रखा है, जबकि संसद में इस प्रस्ताव रखने वाले कई लोगों को श्री नरेंद्र मोदी जी ने अपनी कैबिनेट में मंत्री बना रखा है। क्योंकि वोटरों की शाझी संपत्ति का जो लोग इस्तेमाल कर रहे हैं और उसका किराया डकार रहे हैं, ऐसे अरबपतियों के मुट्ठी में खेल रही है मोदी सरकार।

श्री भरत गांधी असम के शिरांग जिले में आयोजित एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। श्री भरत गांधी ने कहा कि यह देश केवल अरबपतियों का नहीं है अगर वोटरशिप कानून नहीं बनाया जाता तो यही बात प्रमाणित होगी कि केंद्र सरकार केवल 2 प्रतिशत संपन्न लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, बाकी 98 प्रतिशत गरीब और मध्य वर्ग के लोग बेसरकार हैं, बे संसद हैं, बेवतन हैं, अनाथ हैं और उसी तरह गुलाम हैं, जैसे किसानों के बैल किसानों के गुलाम होते हैं।

जाने माने राजनीति सुधारक ने वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैसे किसानों के घरों में काम कराने के लिए बैल पाल कर रखे जाते हैं, उसी तरह देश के गरीब और मध्य वर्ग को केवल बैलों की तरह काम कराने के लिए पाल कर रखा गया है, यही आर्थिक गुलामी है।

श्री भरत गांधी ने कहा कि गरीबी और गुलामी में क्या फर्क है यह बताने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अभी नहीं जानते कि गरीबी और गुलाबी में क्या अंतर है? दर्जनों के पुस्तकों के लेखक श्री भरत गांधी ने कहा कि देश में गरीबी का इलाज किया जा रहा है जबकि बीमारी गुलामी की है. उन्होंने कहा कि जब तक वोटरशिप कानून बनाकर आर्थिक गुलामी की कुप्रथा को बंद नहीं किया जाता, तब तक गरीबी नहीं जाएगी, कुपोषण रहेगा, लोगों में बीमारी रहेगी, स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा.। उन्होंने कहा कि उत्पादन बढ़ाने से गरीबी नहीं जाती। विकास स्तर बढ़ने से गरीबी नहीं जाती।

श्री भरत गांधी ने कहा की वोटरशिप के प्रस्ताव के साथ जो बर्ताव केंद्र सरकारें करती रही हैं, उसे देख कर यह आवाज उठाई जा रही है के अमीरों और गरीबों के हितों में उतना ही टकराव है जितना भारत-पाकिस्तान के हितों में। जब भारत पाकिस्तान की अलग अलग सरकार, अलग-अलग करेंसी नोट, अलग-अलग राष्ट्रीयताओं को मानयता दे हदिया गया, तो अमीरों गरीबों के लिये भी अलग-अलग सरकार और अलग-अलग करेंसी नोट बनना ही चाहिए। क्योंकि 150 किलो का पहलवान 40 किलो के पहलवान से नहीं लड़ सकता। अगर लड़ाई आ जाएगा तो यह प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध होगा। यही अन्याय इस समय संसार भर में चल रहा है। राजनीतिक विचारक ने कहा कि यह जरूरी है कि गरीबों और मध्यवर्ग की राष्ट्रीयता को मान्यता देकर राजनीतिक सुधारों के प्रस्ताव को स्वीकार किया जाए या वोटरशिप कानून बनाया जाए। और विकास में एक-एक वोटर को भागीदारी दिया जाए। श्री भरत गांधी ने कहा कि अगर यह कानून बन जाए तो आज की बाज़ार दरों पर प्रत्येक वोटर को (जो सरकारी कर्मचारी नहीं है और इनकम टैक्स के दायरे में नहीं आता) 4500 हजार रुपया कम से कम हर महीने मिल सकता है. इससे गरीबी चली जाएगी। बेरोजगारी चली जाएगी, विषमता चली जाएगी, क्रय शक्ति बढ़ने से रोजगार बढ़ेगा।

श्री भरत गांधी ने कहा कि यूरोपियन अंधविश्वासों पर अगर देश को हांका जाएगा तो यह देश के लिए और लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं होगा। संसद में प्रस्तुत वोटरशिप अधिकार संबंधी याचिका के प्रमुख याचिकाकर्ता श्री गांधी ने कहा की केंद्र सरकार ने उनके प्रस्ताव की नकल करके आधार कार्ड का कानून बनाया, कैश ट्रांसफर के नीति बनाई, सब्सिडी का पैसा लोगों के खाते में भेजना शुरू किया, जनधन के नाम से लोगों के बैंक में खाते खुलवाया, बेसिक इनकम के नाम से 1500 रू. हर आदमी को देने का प्रस्ताव किया। किंतु न तो जनधन खातों में पैसा भेजा और ना तो बेसिक इनकम के बारे में अपना वादा पूरा किया। श्री भरत गांधी ने कहा कि गरीबों और मध्य वर्ग से ऐसी बेरुखी लोकतंत्र विरोधी और राष्ट्र विरोधी है। श्री गांधी ने कहा कि अगर मोदी सरकार उत्तर प्रदेश का चुनाव हार जाती तो बेसिक इनकम की दिशा में कदम आगे बढ़ाती किंतु जुल्म करने पर भी वोट मिल रहा है तो सेवा करने की क्या जरुरत है? इस सिद्धांत पर नरेंद्र मोदी जी ने लोगों की आर्थिक दुर्दशा खत्म करने के लिए देश में बेसिक इनकम (Votership का आधा अधूरा रूप ) नाम से उठाये जा रहे कदम से यूटन ले लिया। श्री गांधी असम की विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि इतिहास इन सब चीजों का जवाब पूछेगा और केवल मोदी ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी को इसका जवाब देना होगा।⁠⁠⁠⁠

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