14वीं लोकसभा में एक अभूतपूर्व कार्य हुआ था। देश के अधिकांश सांसदों ने वोटरों के हित में एक असाधारण फैसला लेने के लिए मान लिया था। अगर यह फैसला संसद के जरिये कानून का रूप ले लेता तो आज देश में एक भी नागरिक/किसान/बेरोजगार आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या नही करता। राष्ट्रद्रोह के आरोप की पीड़ा किसी को नही झेलनी पड़ती। जितनी आप कल्पना कर सकते हैं उन लगभग सभी सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समस्याओं का अंत हो गया होता। परंतु एक अनोखी घटना यह घटी कि देश की अधिकांश राजनैतिक पार्टियों के अध्यक्ष इस फैसले के खिलाफ खडे हो गए और अपने पद बल पर इस चर्चा को न तो संसद में आगे बढने दिया और न ही मीडिया के जरिये इसे देश की जनता के सामने आने दिया।
आइये जानें क्या था वह प्रस्ताव :
आर्थिक आजादी के बिना वोट का राजनैतिक अधिकार व्यर्थ है। ऐसे में जब कि दुनिया के सभी काम जो हाथ से किये जा सकते हैं वे मशीनों से करना सम्भव हो गया है। दिमाग का काम कम्प्यूटर से होने लगा हो तो प्रत्येक नागरिक को काम का अधिकार नही दिया जा सकता। ऐसे में जीने के लिए धन की दैनिक जरूरत कैसे पूरी होगी? रोजगार की लेने की जिद करना तो आज देशद्रोह की श्रेणी में आना चाहिए। क्यों कि मशीन और कम्प्यूटर से काम छीन कर हर हाथ को काम बांटने की जिद से हम दुनिया की अर्थव्यवस्था में पिछड़ जाएँगे। आर्थिक और वित्तीय जरूरतों की पूर्ति के लिए इस नई क्रांतिकारी सोच का परिणाम “वोटरशिप” है। संसद में उस समय श्री भरत गांधी नामक एक राजनैतिक चिंतक ने यह प्रस्ताव संसद में सांसदों के सामने रखा था।
• 18 वर्ष की आयु पा चुके वे लोग जो पहली बार वोट करने जा रहे हैं या वे लोग जो राजनीति को देश की सेवा का एक मार्ग चुनते हैं ऐसे लोगों को वोटरशिप के बारे में विस्तार से जानना चाहिए। वोटरशिप की शिक्षा के लिए हमें देश भर में ग्राम पंचायत स्तर पर प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। आप किसी भी राजनैतिक दल के वोटर क्यों न हो, वैज्ञानिक प्रणाली से आपको अपनी राजनैतिक शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए ।