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कार्ल मार्क्स ने धर्म के बारे में क्या कहा था?

धर्म हृदयहीन संसार का हृदय है आज के इस पूंजीवादी समाज  ने मनुष्य और मनुष्य के बीच  नग्न निजीस्वार्थ और ‘नगद पैसे-कौड़ी’ के  हृदयशून्य  व्यवहार के अलावा कोई संबंध नहीं छोड़ा है। ऐसे  हृदयहीन पूंजीवादी संसार के  लिए धर्म एक हृदय की भूमिका निभाता है। इस धर्म के नाते ही बहुत से हृदयहीन  पूंजीपति लोग …

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चुनावी चंदे की लालच में गरीबों और मध्यवर्ग से नाता तोड़ चुकी है पार्टियाँ – भरत गांधी

देश के अरबपतियों के फायदे के लिए अगर दो सांसद आवाज़ उठाएं तो केंद्र सरकार कानून बना देती है, लेकिन गरीबों और मध्यवर्ग को आर्थिक गुलामी की कुप्रथा से आजादी देने के लिए जब सैकड़ों सांसदों ने वोटरशिप कानून बनाने की आवाज संसद में उठायी, तो केंद्र सरकार को सांप सूंघ गया। वर्तमान मोदी सरकार …

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आर्थिक आजादी के बिना वोट का राजनैतिक अधिकार व्यर्थ है।

14वीं लोकसभा में एक अभूतपूर्व कार्य हुआ था। देश के अधिकांश सांसदों ने वोटरों के हित में एक असाधारण फैसला लेने के लिए मान लिया था। अगर यह फैसला संसद के जरिये कानून का रूप ले लेता तो आज देश में एक भी नागरिक/किसान/बेरोजगार आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या नही करता। राष्ट्रद्रोह के आरोप की …

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आरक्षण सत्ता में भागीदारी का उपाय है या पैसे में भागीदारी का?

कुछ लोग बहुत पहले से यह बात कहते रहे हैं कि आरक्षण बेरोजगारी खत्म करने का उपाय नहीं है। यह तो सत्ता में भागीदारी का उपाय है। इसलिए इसको आर्थिक नजरिए से ना देखा जाए। इसको सामाजिक नजरिए से देखा जाए। इसी आधार पर यह साबित करते हैं कि संविधान में सामाजिक पिछड़ेपन को पिछड़ापन …

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राजनीति सुधारने से पहले चरित्र सुधारना जरूरी – भरत गांधी

पक्षपाती व्यक्ति हमेशा राजनीति को गंदी करेगा, सुधार नहीं सकता। यदि राजनीतिक व्यक्ति अपने परिवार के प्रति पक्षपाती होगा तो बेईमान जरूर निकलेगा। यदि वह अपने गांव या अपने क्षेत्र या अपने जाति या अपने धर्म के प्रति पक्षपाती होगा तो वह भ्रष्ट जरूर निकलेगा। क्योंकि वह दूसरे गांवों, दूसरे क्षेत्रों, दूसरी जातियों और दूसरे …

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